काशी- विश्वनाथ- ज्ञानवापी -इतिहासkashi-vishwanath-gyanvapi-ka-itihas

काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी का इतिहास History of Kashi Vishwanath and Gyanvapi

काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी का इतिहास History of Kashi Vishwanath and Gyanvapi

परिचयात्मक भाग Introductory part

काशी (वर्तमान में वाराणसी) भारत की सबसे प्राचीन नगरी मानी जाती है। यह धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और ज्ञानवापी मस्जिद इसी परिसर के पास स्थित है। इन दोनों स्थलों के बीच वर्षों से विवाद और संघर्ष चला आ रहा है  जो इतिहास, धार्मिक विश्वास, मुग़ल कालीन आक्रमणों और आधुनिक न्यायिक लड़ाई से जुड़ा हुआ है।Kashi (presently Varanasi) is considered to be the oldest city of India. It is very important from religious, cultural and historical point of view. The Kashi Vishwanath temple located here is one of the 12 Jyotirlingas of Lord Shiva.

प्राचीन इतिहास Ancient history

काशी, जिसे वाराणसी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरी मानी जाती है। इसका उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत और स्कंद पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, जो इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाता है। मान्यता है कि स्वयं भगवान शिव ने इस दिव्य नगर की स्थापना की थी और इसे अपना निवास स्थान बनाया। इसलिए काशी को ‘शिव की नगरी’ भी कहा जाता है।

यह नगर सदियों से ज्ञान, धर्म, संस्कृति और मोक्ष की भूमि रहा है। यहाँ स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर को विशेष रूप से अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस मंदिर का ऐतिहासिक उल्लेख गुप्त काल (लगभग 5वीं शताब्दी) से प्राप्त होता है, हालांकि इसके पहले भी यहाँ शिव की आराधना होती रही है। काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव को विश्व के नाथ (ईश्वर) के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर समय-समय पर अनेक बार ध्वस्त हुआ और पुनः निर्मित किया गया, किंतु श्रद्धालुओं की आस्था कभी कम नहीं हुई।

यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है। भारत ही नहीं, विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु और पर्यटक हर वर्ष यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। काशी और काशी विश्वनाथ मंदिर सदियों से हिंदू धर्म के अनुयायियों का प्रमुख तीर्थस्थान रहे हैं और आज भी यह आस्था, विश्वास और अध्यात्म का केंद्र बना हुआ है।

मध्यकालीन इतिहास: विध्वंस और पुनर्निर्माण Medieval History: Destruction and Reconstruction

11वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक भारत पर मुसलमान आक्रमणकारियों का शासन रहा, जिनमें से कई शासकों ने हिंदू मंदिरों को नष्ट कर मस्जिदें बनवायीं।From the 11th century to the 17th century, India was ruled by Muslim invaders, many of whose rulers destroyed Hindu temples and built mosques.

1194 ई. में मोहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने काशी पर आक्रमण किया और मंदिर को नुकसान पहुँचाया।

1585 ई. में राजा टोडरमल के पुत्र द्वारा एक बार फिर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया।

1669 ई. में औरंगज़ेब ने हिंदू धर्म को दबाने के अपने अभियान के तहत काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करवा कर वहाँ ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया।

ज्ञानवापी” नाम ‘ज्ञान + वापी’ (ज्ञान की बावड़ी) से निकला है, और यह माना जाता है कि औरंगज़ेब ने मंदिर तोड़ने के बाद उसी स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया।The name “Gyanvapi” is derived from ‘gyan + vapi’ (stepwell of knowledge), and it is believed that Aurangzeb built the mosque at the same site after demolishing a temple.

18वीं और 19वीं शताब्दी: मंदिर का पुनर्निर्माण18th and 19th centuries: Reconstruction of the temple

1777 ई. में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। यह मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद के पास ही बनाया गया था, क्योंकि मूल स्थल पर अब मस्जिद बनी हुई थी।In 1777 AD, Maharani Ahilyabai Holkar of Indore rebuilt the present Kashi Vishwanath temple. This temple was built near the Gyanvapi Mosque, as the original site was now occupied by a mosque.

1835-1840 ई. में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया।In 1835-1840 AD, Maharaja Ranjit Singh of Punjab got the top of the temple plated with gold.

स्वतंत्रता के बाद का काल: बढ़ता हुआ विवाद Post-independence era: growing controversy

भारत के स्वतंत्र होने के बाद धार्मिक स्थलों को लेकर राजनीतिक और सामाजिक विवाद बढ़े। बाबरी मस्जिद–राम जन्मभूमि विवाद के बाद काशी और मथुरा के मुद्दे भी अधिक मुखर हो गए।

1991 में वाराणसी के कुछ श्रद्धालुओं ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी, इसलिए उस स्थान को पुनः हिंदू मंदिर घोषित किया जाए।In 1991, some devotees of Varanasi claimed that the Gyanvapi Mosque was built by demolishing a temple, so that place should be declared a Hindu temple again.

इसके विरोध में मुस्लिम पक्ष ने कहा कि मस्जिद एक वैध धार्मिक स्थल है और इसे नहीं हटाया जा सकता।

1977 का उपासना स्थल अधिनियम

Places of Worship Act of 1977

भारत सरकार ने 1991 में एक कानून बनाया – Places of Worship (Special Provisions) Act, जिसके अनुसार 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस धर्म के पास था, उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इस कानून के तहत काशी और मथुरा जैसे विवादित स्थल कानूनी रूप से संरक्षित माने जाते हैं।

हालांकि, राम जन्मभूमि विवाद को इस कानून से अलग रखा गया था।

2021-2022: कानूनी और वैज्ञानिक जांच2021–2022: Legal and scientific investigations

2021 में वाराणसी की एक अदालत में याचिका दाखिल की गई कि ज्ञानवापी परिसर की वीडियोग्राफी करवाई जाए, जिससे यह पता चले कि मस्जिद के अंदर अब भी मंदिर के चिन्ह (जैसे शिवलिंग, मूर्तियाँ आदि) हैं या नहींIn 2021, a petition was filed in a Varanasi court that the Gyanvapi complex should be videographed to find out whether the symbols of the temple (like Shivling, idols, etc.) are still present inside the mosque or not.

2022 में वीडियोग्राफी सर्वे हुआ और उसमें वादी पक्ष ने दावा किया कि वज़ूख़ाना (जहाँ मुस्लिम नमाज़ से पहले वज़ू करते हैं) में शिवलिंग पाया गया है।

मुस्लिम पक्ष का तर्क था कि वह “शिवलिंग नहीं बल्कि फव्वारा है”।

इसके बाद अदालत ने उस स्थान को सील करवा दिया और दोनों पक्षों से रिपोर्ट मंगाई।

वर्तमान स्थिति (2023–2025)Current status (2023–2025)

मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चुका है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को आदेश दिया गया कि वह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की वैज्ञानिक जांच करे।

जनवरी 2024 में ASI ने अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपी, जिसमें संकेत दिए गए कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष हो सकते हैं।

हिंदू पक्ष ने मंदिर के पुनः निर्माण की माँग तेज कर दी है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे धार्मिक स्वतंत्रता और कानून के उल्लंघन की दृष्टि से देख रहा है।

धार्मिक और सामाजिक प्रभाव Religious and social influences

यह विवाद केवल एक संरचना का नहीं है, बल्कि यह भारत में धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक सहिष्णुता और ऐतिहासिक सत्य की खोज से जुड़ा हुआ है। इसके परिणामस्वरूप धार्मिक ध्रुवीकरण भी देखा गया है।

कुछ हिंदू संगठन इसे धार्मिक पुनर्जागरण मानते हैं।

मुस्लिम पक्ष इसे अपने अधिकार और अस्तित्व की रक्षा का प्रश्न मानता है।

Some Hindu organizations consider it a religious renaissance.

The Muslim side considers it a question of protecting their rights and existence.

निष्कर्ष conclusion

काशी में ज्ञानवापी और काशी विश्वनाथ का विवाद केवल एक स्थान विशेष का संघर्ष नहीं है, बल्कि यह भारत के इतिहास, धर्म, राजनीति और समाज की जटिलताओं का प्रतीक है। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों, वैज्ञानिक प्रमाणों और धार्मिक सहिष्णुता का समन्वय आवश्यक है। न्यायालय की भूमिका इस दिशा में निर्णायक है

लेकिन समाज को भी परस्पर सम्मान और संवाद से इस संवेदनशील मुद्दे का हल निकालने की आवश्यकता है।

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