सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास History of Indus Valley Civilizati
भूमिका
सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। यह सभ्यता लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व के बीच अपने उत्कर्ष पर थी। यह सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी। इसे हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilization) के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका पहला प्रमुख स्थल ‘हड़प्पा’ था, जो अब पाकिस्तान में स्थित है।
सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल और विस्तार Documentary and detail of Indus Valley Civilization
सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन विश्व की सबसे विस्तृत और उन्नत सभ्यताओं में से एक थी। यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में रही और अपने समय की सामाजिक, आर्थिक और नगरीय संरचना में अत्यंत विकसित थी।
इस सभ्यता का क्षेत्रफल अत्यंत विशाल था। यह उत्तर में जम्मू-कश्मीर की सीमाओं से लेकर दक्षिण में गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र तक फैला हुआ था। पूरब में इसका विस्तार उत्तर प्रदेश के मेरठ और रोहतक जैसे क्षेत्रों तक तथा पश्चिम में पाकिस्तान के बलूचिस्तान और अफगानिस्तान की सीमाओं तक था। कुल मिलाकर, यह सभ्यता लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई थी, जो आज के भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों को सम्मिलित करता है।
मुख्य स्थल और उनका भौगोलिक वितरण
सिन्धु घाटी सभ्यता के हजारों स्थलों की खोज की गई है, जिनमें से कई अत्यंत महत्वपूर्ण हैं:
1. हड़प्पा (पंजाब, पाकिस्तान) – यह स्थल सबसे पहले खोजा गया था और इसी के आधार पर इस सभ्यता को “हड़प्पा सभ्यता” नाम दिया गया।
2. मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान) – यह स्थल नगर नियोजन, स्नानागार और जल निकासी व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है।
3. चन्हुदड़ो (पाकिस्तान) – यह एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र था, जहां मनकों, मुहरों और धातु वस्तुओं का निर्माण होता था।
4. धोलावीरा (गुजरात, भारत) – यह स्थल अद्भुत जल संचयन प्रणाली और वास्तुकला के लिए जाना जाता है।
5. लोथल (गुजरात, भारत) – यह एक प्रमुख बंदरगाह था, जो व्यापार के लिए जाना जाता है।
6. कालीबंगा (राजस्थान, भारत) – यह स्थल खेती, हल के उपयोग और अग्नि वेदियों के लिए प्रसिद्ध है।
7. राखीगढ़ी (हरियाणा, भारत) – यह अब तक का सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल माना जाता है और इसके कई स्तरों
की खुदाई अभी भी चल रही है।
नगर नियोजन और वास्तुकला Town planning and architecture
सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे उल्लेखनीय विशेषता इसकी नगर योजना है।
नगरों का निर्माण ग्रिड प्रणाली पर किया गया था, जिसमें सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
मकान पक्की ईंटों से बनाए जाते थे, जिनमें कई कमरे, रसोईघर, स्नानघर होते थे।
हर मकान में एक अच्छा जल निकासी तंत्र होता था।
मोहनजोदड़ो का ‘महान स्नानागार’ (Great Bath) इस सभ्यता की उत्कृष्ट स्थापत्य कला का उदाहरण है।
कृषि और अर्थव्यवस्था
सिन्धु सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित थी।
लोग गेहूं, जौ, तिल, कपास, चना, सरसों आदि की खेती करते थे।
पशुपालन भी आम था। बैल, भेड़, बकरी, हाथी और कुत्ते पाले जाते थे।
लोथल और कालीबंगा जैसे स्थलों से सिंचाई प्रणाली के प्रमाण मिले हैं।
व्यापार भी अत्यंत विकसित था। आंतरिक और बाह्य व्यापार होता था।
मेसोपोटामिया (आज का इराक) से व्यापार के प्रमाण मिलते हैं।
मोहरें, तौलने के पत्थर, बाट, चूड़ियाँ, मिट्टी के खिलौने, तांबे के औजार आदि व्यापारिक वस्तुएं थीं।
व्यापार स्थलीय और जलमार्ग दोनों से होता था। लोथल में एक प्राचीन बंदरगाह की खोज हुई है।
धर्म और धार्मिक विश्वास Religion and religious beliefs
सिन्धु घाटी सभ्यता के धर्म के बारे में जानकारी मुख्यतः मूर्तियों और मुहरों से मिलती है।
लोग मातृ देवी (Mother Goddess) की पूजा करते थे, जिससे जननक्षमता की महत्ता स्पष्ट होती है।
पशुपति महादेव’ जैसी एक आकृति पाई गई है, जिसमें एक व्यक्ति तीन मुखों वाला है और पशुओं से घिरा है – इसे शिव का प्रारंभिक रूप माना जाता है।
वृक्ष (विशेषकर पीपल), पशु (नंदी, हाथी), और सर्प की पूजा होती थी।
अग्नि पूजा और जल की पवित्रता पर भी विश्वास था।
धार्मिक स्थलों के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलते, जिससे संकेत मिलता है कि धार्मिक अनुष्ठान घरों में ही होते थे।
लिपि और भाषा
सिन्धु घाटी की अपनी लिपि थी, जिसे अब तक पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सका है।
यह लिपि चित्रलिपि (pictographic) जैसी है।
लगभग 400 प्रतीकों का उपयोग होता था।
मुहरों पर खुदी लिपियाँ इसके प्रमुख स्रोत हैं।
भाषा को लेकर मतभेद हैं – कुछ विद्वान इसे द्रविड़ भाषा मानते हैं, तो कुछ अन्य इसे मुण्डा या प्रोटो-संस्कृत मानते हैं।
कला और संस्कृति
सिन्धु घाटी के लोग कला और शिल्प में दक्ष थे।
तांबे की नर्तकी (Dancing Girl) की मूर्ति इस कला की उत्कृष्टता का उदाहरण है।
पशु आकृतियाँ, खिलौने, चूड़ियाँ, आभूषण, मिट्टी की मूर्तियाँ आदि उस समय के लोकप्रिय शिल्प थे।
लोग कपड़े पहनते थे, जिसमें पुरुष धोतीनुमा वस्त्र और स्त्रियाँ साड़ीनुमा वस्त्र पहनती थीं।
प्रशासन और सामाजिक जीवन
प्रशासन का स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन नगर नियोजन और समानता से लगता है कि कोई संगठित प्रशासनिक व्यवस्था रही होगी।
समाज में कोई गहरी वर्ग व्यवस्था के प्रमाण नहीं मिले हैं।
महिलाओं को सम्मान प्राप्त था – मातृदेवी की पूजा और स्त्रियों की मूर्तियाँ इसका प्रमाण हैं।
लोग स्वच्छता को अत्यधिक महत्व देते थे – हर घर में नालियां, शौचालय, स्नानघर होते थे।
विनाश के कारण
सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन आज भी एक रहस्य है। विद्वानों ने कई संभावित कारण बताए हैं:
1. प्राकृतिक आपदाएं – बार-बार आने वाली बाढ़, भूकंप, नदियों का मार्ग बदलना।
2. जलवायु परिवर्तन – सिंधु और उसकी सहायक नदियों में जलस्तर घटने से कृषि प्रभावित हुई।
3. आर्यों का आगमन – कुछ विद्वान मानते हैं कि आर्यों के आक्रमण से यह सभ्यता नष्ट हो गई।
4. आंतरिक संघर्ष – आंतरिक अव्यवस्था और सत्ता संघर्ष भी एक कारण हो सकता है।
वास्तविक कारण शायद इन सभी का मिश्रण था।
सिन्धु सभ्यता का महत्व
यह सभ्यता भारतीय इतिहास का गर्व है।
नगर नियोजन, जल निकासी, स्थापत्य, व्यापार और सामाजिक समरसता के क्षेत्र में यह अत्यंत उन्नत थी।
इस सभ्यता ने भविष्य की सभ्यताओं को दिशा दी।
भारतीय उपमहाद्वीप में सभ्यता की निरंतरता का यह प्रमाण है।
निष्कर्ष
सिन्धु घाटी सभ्यता मानव इतिहास की एक अनमोल धरोहर है। यह हमें यह दिखाती है कि लगभग 5000 वर्ष पहले भी लोग उच्चस्तरीय नगर नियोजन, व्यापार, कृषि, सामाजिक व्यवस्था और कला में पारंगत थे। आज भी इसके अवशेष हमें अतीत की एक झलक देते हैं
और हमें अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व करने का अवसर प्रदान करते हैं। हमें चाहिए कि इस धरोहर का संरक्षण करें और इसके अध्ययन को और अधिक आगे बढ़ाएं।