जगन्नाथ जी की रहस्यमयी कथा: जन्म से रथयात्रा तक जगन्नाथ की पूरी सच्ची कहानी
भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर जगह भगवान की पूजा होती है। हर राज्य, हर गाँव और हर शहर में लोग अपने-अपने तरीके से भगवान को मानते हैं। ऐसे ही ओडिशा राज्य के पुरी नाम के शहर में भगवान जगन्नाथ का एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध मंदिर है।
भगवान जगन्नाथ को भगवान श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है। लेकिन उनकी पूजा करने का तरीका, उनका रूप, उनका रथयात्रा पर्व और उनसे जुड़ी परंपराएँ बाकी भगवानों से बिल्कुल अलग हैं।
इस लेख में हम भगवान जगन्नाथ की असली कहानी जानेंगे – जैसे कि उनकी मूर्ति कैसे बनी, मंदिर का इतिहास क्या है, रथयात्रा क्यों होती है, और भगवान से जुड़े रहस्य और चमत्कार क्या हैं। यह कहानी श्रद्धा, आस्था और भारतीय परंपरा से भरी हुई है, जिसे जानना हर किसी के लिए बहुत रोचक है।
जगन्नाथ का अर्थ
‘जगन्नाथ’ दो शब्दों से मिलकर बना है:
जगत = संसार
नाथ = स्वामी या भगवान
अर्थात, जगन्नाथ वह हैं जो पूरे जगत के स्वामी हैं। भगवान जगन्नाथ को विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ की उत्पत्ति की कथा
राजा इंद्रद्युम्न की कथा
बहुत पहले, मालवा राज्य में राजा इंद्रद्युम्न नामक एक परम विष्णु भक्त राजा हुआ करते थे। उन्हें यह जानने की तीव्र इच्छा हुई कि इस पृथ्वी पर सबसे पवित्र मूर्ति कहाँ है।
एक दिन उन्हें एक साधु ने बताया कि नीलांचल (वर्तमान पुरी) में भगवान विष्णु स्वयं एक लकड़ी की मूर्ति के रूप में प्रकट हुए हैं, जिन्हें ‘नीलमाधव’ कहा जाता है।
राजा ने वहाँ एक भव्य मंदिर बनाने का संकल्प लिया और समुद्र तट के निकट यज्ञ करके भगवान से प्रार्थना की।
तब समुद्र से एक पवित्र नीम का पेड़ बहकर आया, जिसे ‘दारुब्रह्म’ कहा गया। भगवान ने स्वप्न में कहा कि उसी लकड़ी से मूर्ति बनानी है।
विश्वकर्मा का आगमन और रहस्य
भगवान विष्णु ने स्वयं विश्वकर्मा को मूर्तियाँ बनाने भेजा। विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि वह 21 दिन तक एक कमरे में बंद होकर मूर्तियाँ बनाएंगे और कोई उस दौरान दरवाज़ा नहीं खोलेगा।
लेकिन कुछ दिन बाद राजा की रानी ने दरवाज़ा खोल दिया, जिससे मूर्तियाँ अधूरी रह गईं – बिना हाथ-पैर की। परंतु आकाशवाणी हुई:
हे राजा! यही मेरा सच्चा स्वरूप है। यही मेरी पूर्णता है। इसे ही स्थापित करो।
तभी से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की अधूरी प्रतीत होती मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।
जगन्नाथ जी का रहस्यमयी स्वरूप
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति काली लकड़ी की होती है, आंखें बहुत बड़ी होती हैं, और उनका मुखमंडल गोलाकार होता है। उनकी मूर्ति में ना तो पूरी भुजाएँ हैं, न ही पैरों का स्पष्ट आकार।
परंतु श्रद्धा के अनुसार यह उनका अधूरा नहीं, ब्रह्म रूप है – जो निराकार और अखंड है।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर
पुरी (ओडिशा) में स्थित यह मंदिर भारत के चार धामों में एक है (बाकी तीन: बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम)। यह मंदिर 12वीं सदी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने बनवाया था।
मंदिर के कुछ अद्भुत रहस्य आज भी विज्ञान नहीं समझा पाया है:
1. मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं उड़ता।
2. मंदिर पर दिन के किसी समय छाया नहीं पड़ती।
3. मंदिर के अंदर जाते ही समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है।
4. ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
5. यहाँ का प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता और न बर्बाद होता है।
रथ यात्रा: भगवान की सालाना सैर
जगन्नाथ जी की रथयात्रा संसार की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में गिनी जाती है। यह आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है।
इसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी अपनी-अपनी विशाल रथों में सवार होकर पुरी के गुंडिचा मंदिर जाते हैं और 9 दिन बाद वापस आते हैं।
रथों के नाम होते हैं:
- जगन्नाथ जी: नंदीघोष (16 पहिए)
- बलभद्र जी: तालध्वज (14 पहिए)
- सुभद्रा जी: पद्मध्वज (12 पहिए)
लाखों भक्त इन्हें खींचने आते हैं, और मान्यता है कि जो रथ खींचता है, उसका मोक्ष सुनिश्चित है।
नवकलेवर: मूर्तियों का पुनर्जन्म
हर 12 से 19 वर्षों में एक विशेष प्रक्रिया होती है – जिसे नवकलेवर कहते हैं। इसमें पुरानी मूर्तियों को बदला जाता है और नई मूर्तियाँ नीम के विशेष पेड़ से बनाई जाती हैं।
माना जाता है कि पुरानी मूर्तियों में रखे गए “ब्रह्म तत्व” को नए मूर्तियों में स्थानांतरित किया जाता है। यह प्रक्रिया बेहद गोपनीय होती है और जो पुजारी इसे करते हैं, वे जीवनभर ब्रह्मचारी रहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण से संबंध
कहते हैं, जब श्रीकृष्ण की द्वारका में मृत्यु हुई, तब उनका शव जल में बहा दिया गया। वह शव बहते-बहते ओडिशा के तट पर आया। उसी के पवित्र हड्डियों को बाद में जगन्नाथ की मूर्ति में “ब्रह्म तत्व” के रूप में स्थापित किया गया।
इसलिए भगवान जगन्नाथ का रूप श्रीकृष्ण से गहराई से जुड़ा है।
महाप्रसाद: दिव्य भोग
पुरी मंदिर में प्रतिदिन भगवान को 56 प्रकार का भोग लगाया जाता है, जिसे “छप्पन भोग” कहा जाता है।
यह प्रसाद हर दिन 6 बार पकाया जाता है, और सबसे अद्भुत बात यह है कि
यह 7 बर्तनों में एक-दूसरे के ऊपर पकता है,
लेकिन सबसे ऊपर वाला बर्तन सबसे पहले पकता है।
प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता – चाहे 5 लाख भक्त आएं या 10 लाख।
जगन्नाथ जी के अद्भुत रहस्य
1. ध्वजा उल्टा फहराना – हर दिन मंदिर पर झंडा बदला जाता है और पुजारी इसे उल्टा चढ़ाते हैं।
2. शंख नहीं बजता – जगन्नाथ मंदिर में शंख बजाना मना है क्योंकि यह बलराम जी के द्वारा रोका गया था।
3. समुद्र की आवाज गायब – सिंहद्वार से अंदर घुसते ही समुद्र की आवाज सुनाई नहीं देती।
4. गुंडिचा मंदिर – श्रीकृष्ण का मायका – जहां भगवान रथयात्रा में जाते हैं, उसे श्रीकृष्ण का ननिहाल माना जाता है।
श्रद्धा का केंद्र
पुरी का जगन्नाथ मंदिर केवल ओडिशा का धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह हिंदू संस्कृति की आत्मा है। यहाँ न जाति का भेद है, न वर्ग का। भगवान स्वयं सबके घर आते हैं – यही संदेश है उनकी रथयात्रा का।
विश्व स्तर पर लोकप्रियता
आज केवल भारत में ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों में भगवान जगन्नाथ की पूजा होती है – खासकर इस्कॉन (ISKCON) द्वारा। अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी रथयात्रा धूमधाम से मनाई जाती है।
भगवान जगन्नाथ की सच्ची कहानी केवल धार्मिक विश्वास नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, इतिहास, परंपरा और मानवता का महान प्रतीक है। उनकी मूर्ति हमें सिखाती है कि ईश्वर का रूप मायने नहीं रखता, बल्कि उसकी भावना, श्रद्धा और भक्ति ही सर्वोपरि है।
पुरी का मंदिर, रथयात्रा, नवकलेवर, महाप्रसाद – यह सब मिलकर भारत की आत्मा की कहानी कहते हैं। और जब करोड़ों लोग “जय जगन्नाथ” का उद्घोष करते हैं, तब सारा ब्रह्मांड उनकी भक्ति से गूंज उठता है
।।🙏🏻जय जगन्नाथ 🙏🏻।।