जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास।
प्रस्तावना: 9 अप्रैल 1919 को रामनवमी के दिन हिंदू और मुस्लिम एक साथ एक बड़े जुलूस में उतरे मुसलमानों ने इस दौरान तुर्की सी की तरह कपड़ा पहना था इतने लेवल पर एक साथ हिंदू मुस्लिम की एकता को देखकर अंग्रेज घबरा गए पंजाब में कांग्रेस के दो बड़े नेता डॉक्टर सैफुद्दीन और डॉक्टर सत्यपाल अंग्रेजों के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे थे अगले दिन 10 अप्रैल 1919 को दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया इसी बीच गांधी जी पंजाब का जायजा लेने के लिए मुंबई से पंजाब आने का फैसला लिया इस खबर को सुनकर अंग्रेजों ने उन पर पंजाब ना आने पर रोक लगा दिया लेकिन गांधी जी इस रोक पर नजर अंदाज करते हुए ट्रेन से पंजाब के लिए रवाना हुए जैसे ही उनकी ट्रेन दिल्ली के पास पहुंची उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया उसके बाद पंजाब में विद्रोह तेजी से भड़क गया 10 अप्रैल को ही अपने नेताओं की रिहाई की मांग को लेकर करीब 50000 लोगों ने सिविल लाइन तक एक विशाल रैली निकाली इस दौरान प्रदर्शन करावो की अंग्रेजों से मुठभेड़ हो गई।यहां से ब्रिटिश के जो बुरा टाइम था स्टार्ट हो गया। 13 अप्रैल 1919 को करीब 10000 हज़ार लोग से ज्यादा जलियांवाला बाग पहुंच गए प्रोटेक्ट करने और इधर जो जनरल डायर थे उनको यह चीज पता चल जाती है जलियांवाला बाग पहुंच जाते हैं जलियांवाला बाग का एक ही एंट्री थी एक ही आउट था इस गेट पर जनरल डायर ने ब्लॉक करके वहीं पर अपनी टीम के साथ खड़े हो जाते हैं और फिर फायरिंग स्टार्ट करवा देते हैं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक अत्यंत दुखद और क्रूर अध्याय है। यह घटना 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर, पंजाब में घटी थी। उस दिन बैसाखी का पर्व था और बड़ी संख्या में लोग जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए एकत्रित हुए थे।The Jallianwala Bagh massacre is a very sad and cruel chapter in the history of the Indian freedom struggle. The incident took place on 13 April 1919 in Amritsar, Punjab. That day there was a festival of Baisakhi and a large number of people gathered for a peaceful meeting in Jallianwala Bagh.
सभा का उद्देश्य रॉलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना था।
ब्रिटिश जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के बाग को चारों ओर से घेरकर भीड़ पर गोलियां चलवा दीं।
गोलियों की बौछार लगभग 10 मिनट तक चली और अनुमानतः हजारों लोग घायल और सैकड़ों मारे गए। सरकारी आँकड़ों के अनुसार 379 लोग मारे गए, जबकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है।
बाग के एकमात्र संकरे प्रवेश द्वार को भी बंद कर दिया गया था, जिससे लोग भाग नहीं पाए।
वहां एक कुआँ था जिसमें कई लोग जान बचाने के लिए कूद गए और दम घुटने से मर गए।
इस हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और तीव्र कर दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दी।(Rabindranath Tagore returned the title of ‘Knighthood’.)
महात्मा गांधी ने इसे ब्रिटिश हुकूमत की अमानवीयता की पराकाष्ठा बताया और इसके बाद असहयोग आंदोलन की नींव रखी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद वकीलों और नेताओं की भूमिका:
1. महात्मा गांधी- गांधीजी ने इस हत्याकांड के बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ देशव्यापी असहयोग आंदोलन का आह्वान किया।Gandhiji called for a nationwide non -cooperation movement against British rule after this murder.
2. मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास– ये प्रमुख वकील और राजनेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार की निंदा की और कांग्रेस के मंच से इस बर्बरता के खिलाफ आवाज उठाई।
3. रवींद्रनाथ टैगोर- उन्होंने ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटाकर विरोध प्रकट किया, यह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक गहरी नैतिक चोट थी। He protested by returning the title of ‘Knighthood’, it was a deep moral injury against the British Empire.
4. हंटर आयोग और वकीलों की प्रतिक्रिया- ब्रिटिश सरकार ने घटना की जांच के लिए हंटर आयोग बनाया, लेकिन यह एकपक्षीय था।
5. सरदार ऊधम सिंह-उन्होंने वर्षों बाद 1940 में लंदन जाकर जनरल डायर के साथी माइकल ओ’डायर को गोली मार दी।ऊधम सिंह को ब्रिटिश अदालत ने फांसी की सज़ा दी, लेकिन उन्होंने कहा कि यह जलियांवाला बाग का बदला था। He went to London in 1940 years later and shot General Dyer’s partner Michael O’Dire. Udham Singh was sentenced to death by the British court, but he said that it was a revenge of Jallianwala Bagh.
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भारतीय वकीलों, नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने इस अन्याय के खिलाफ राजनीतिक और नैतिक लड़ाई लड़ी। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई।
सर शंकरण नायर (Sir Chettur Sankaran Nair) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान वकील, न्यायविद् और राजनेता थे, जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ साहसपूर्वक आवाज़ उठाई।Sir Chettur Sankaran Nair was a great lawyer, jurist and politician of the Indian freedom struggle, who boldly voiced the British rule after the Jallianwala Bagh murder.
संकरण नायर की कहानी The story of hybridization Nair-
1. जन्म और शिक्षा:
जन्म: 11 जुलाई 1857, मलप्पुरम, केरल
शिक्षा: कानून की पढ़ाई की और मद्रास हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की।
2. राजनीतिक भूमिका:
वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे (1897)।
उन्हें 1915 में वायसराय की कार्यकारी परिषद में शिक्षा विभाग का सदस्य नियुक्त किया गया, जो ब्रिटिश भारत की सबसे ऊँची प्रशासकीय संस्था थी।
3. जलियांवाला बाग हत्याकांड और इस्तीफ़ा (1919): जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, तो शंकरण नायर ब्रिटिश सरकार के भीतर एकमात्र भारतीय सदस्य थे।
उन्होंने इस नृशंस कांड के विरोध में तत्काल वायसराय की कार्यकारी परिषद से इस्तीफा दे दिया।
यह एक ऐतिहासिक और साहसी कदम था, जिसने ब्रिटिश सरकार को झटका दिया।
4- Book-Gandhi and Anarchy”
उन्होंने ब्रिटिश राज की आलोचना करते हुए यह किताब लिखी।
इस किताब में उन्होंने गांधीजी की नीतियों की भी आलोचना की, लेकिन ब्रिटिश हिंसा और अत्याचारों की कठोर निंदा की।
शंकरण नायर को भारतीय न्यायपालिका और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके सैद्धांतिक और नैतिक योगदान के लिए याद किया जाता है।
उनका साहसिक इस्तीफा एक मिसाल बन गया कि कैसे एक उच्च पद पर रहते हुए भी अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ जा सकता है।
सर शंकरण नायर एक ऐसे भारतीय थे जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता के अंदर रहते हुए भी सच का साथ दिया और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उनका जीवन साहस, न्याय और सिद्धांतों का प्रतीक है। Sir Shankaran Nair was an Indian who supported the truth even while under the British power and raised his voice against injustice. His life is a symbol of courage, justice and principles.
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